मॉडर्न पेरेंटिंग
- Laxmi Kant
- Jan 22, 2021
- 4 min read
इस लेख का विषय मेरे हृदय के काफी नजदीक है, जिसे मैंने बहुत नजदीक से महसूस किया है और आप सभी भी इस पहलू से गुजरे होंगे। लेकिन विडम्बना ये है कि हममे से कईयों को इस बात का पता नही चलता या फिर हम जीवन की भागदौड़ में इसे अनदेखा कर देते हैं।

"बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से होए।"
संत कबीरदास जी ने बिल्कुल ठीक ही कहा है, लेकिन क्या ये हमारे ऊपर लागू नहीं होता, हम अपने बच्चों के खेत रूपी कोमल मन में जाने अनजाने में क्या क्या बो रहे हैं, क्या कभी ध्यान दिया है आपने..!!
आज ये वक्तव्य किसी हद तक सही भी है। हो सकता है मेरी बाते कुछ लोगों को अच्छी न लगे या हो सकता हैं कि शायद आप सहमत भी न हों। लेकिन आज परवरिश आज सिर्फ सिर्फ सुनने और पढ़ने तक सिमित रह गया है।
अगर अच्छे परवरिश की बात की जाये तो हम अपने बच्चे में वो देखना चाहते हैं और अगर इसके विपरित की कल्पना हम करते हैं तो वो सदैव दूसरों की तरफ देखते हैं।
हम कभी भी यह नही चाहते कि हमारे पूरे परिवेश में ही अच्छे परवरिश की सुगंध हो। चूंकि आज हम सिर्फ स्वयं तक सिमित रहना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि हमसे बढ़कर कुछ न हो और जो भी हो तो वो हमसे नीचे ही हो।
लेकिन स्वयं के प्रति दूसरों से हमारी अभिलाषा और अपेक्षाएँ बिल्कुल विपरित होती है। हम चाहते हैं कि वो हमारी तारिफ करें, हमारे परिवार की मिशाल दें।

बच्चे का पालन-पोषण, जिसे आज मोडर्न पैरंटींग भी कहा जा सकता है। जो कि किसी हद तक पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति से परिपूर्ण होता है। आजकल अभिभावक के लिये बच्चों की परवरिश किसी जंग से कम नही है। जिसे जीतने के लिये भी बाहर की ओर एकटक आंख लगाये देखते रहते हैं। हम अपने बच्चे के अन्दर दूसरों की खूबियों को देखना चाहते हैं, लेकिन बुराइयों को बिल्कुल बर्दास्त नही कर सकते।
हम चाहते हैं की कोई चमत्कार हो और हमारा बच्चा पटरी पर आ जाएँ। चाहे वो स्कुल या स्कुल के शिक्षक से हो या पड़ोस के शर्मा जी के बच्चे के उदाहरण से।
इसका मुख्य वजह आज कल के व्यस्ततम जीवनशैली भी है, जिसमें हम अपने बच्चों को बिल्कुल भी समय नही दे पाते। चाहे वो हम एक माँ के रूप में देखें या पिता के रुप में। आज हम सभी धन रुपी माया के पीछे अपने असली धन को भुल गये हैं।
अगर आप हमारे शास्त्रों में जायें तो आपको पता चलेगा कि किसी भी बच्चे की परवरिश वो नही होती जो हम किताबों से पढ़कर या दूसरों के अनुरुप देखकर कर सकते हैं। बच्चे कोई मशीन नहीं हैं जिसे हम जब चाहे, जैसे चाहें डिजाईन कर लें।
असल में बच्चे अपने माता-पिता व अपने परिवेश का प्रतिरूप होता है, जिसकी पुष्टि हमारे शास्त्रों ने भी किया है और आज विज्ञान भी इसे मानता है।
शास्त्रों के तौर पर हम देखें तो हम महाभारत के अभिमन्यु, पांडवो और कौरवों के माध्यम से इसके साझ्य को समझ सकते हैं।
जबकि अगर हम विज्ञान के नजर से देखें तो किसी भी बच्चे के मस्तिष्क और कौशल विकास की शुरुआत गर्भावस्था के 4 से 6 माह के भीतर ही शुरु हो जाती है जो माता के खान पान, परिवेश, व्यवहार के आधार पर विकसित होते जाती है।
आज हमें कई समस्याये ऐसी हैं जो बिल्कुल एक समान देखने को मिलती हैं कि जैसे कि आज कल बच्चे टी वी, मोबाइल, इंटरनेट पर अत्यधिक समय व्यतीत करते हैं।
बच्चे अपने से बड़ो का आदर नहीं करते, बात नहीं सुनते, उनका खान पान सही नही होता हैं और भी ऐसे बहुत सी समस्याये हैं जो अभिभावकों को परेशान करती हैं।

गौर कीजिये कि...
अगर राम को उनके पिता ने शिक्षा के लिये अपने से अलग नही किया होता तो वे 14 साल तक का वनवास सहन कर पाते।
अगर श्रीकृष्ण को उनके पिता ने उनके माता से अलग नही किया होता तो क्या वे जीवित रह पाते और क्या कंस का संहार हो सकता था...? जवाब है, नहीं!
इसी तरह हमें अपने बच्चे के भावी भविष्य के लिये धन नही बल्कि उनके कौशल विकास मे योगदान करना चाहिए। उन्हे बैठ कर खाने वाला नही बल्कि कमाकर खाने वाला बनाना चाहिए। जिसकी शुरुआत आपके छोटे-छोटे बलिदान से होती है, जो कि एक अच्छे भविष्य के लिये सही हो।
ऐसा नही है कि सिर्फ दो महापुरुष हैं जो इसके उदाहरण हैं। आज अगर राम और श्रीकृष्ण का उदाहरण हम ले रहें हैं तो उसके पीछे उनका आधार उनके अभिभावकों का प्रेम, लगन, जिम्मेदारी और परवरिश है, जो वंशानुगत चलता रहा है।
ठीक उसी तरह अगर हम अपने बच्चे में व्यवहारिकता, निपुणता, कौशल, प्रेम से परिपूर्ण व्यक्तित्व देखना चाहते हैं।
तो पहले हमें उसे हमें स्वयं से शुरु करना चाहिए। हमें सभी गुणों को स्वयं में धारण करना चाहिए। क्योंकि जो आने वाला है या जो आप अपने बच्चे में चाहते हो वो भी तो आपका ही प्रतिरूप है।
एक बात समझ लिजीये, अगर बच्चे में राम चाहिए तो दशरथ और कौशिल्या आपको बनना पड़ेगा।
आप भी अगर अपने वंश सात्विक अंश हैं तो आपका अंश भी एक सात्विक वंश का परिचालन करेगा।
- लक्ष्मीकांत, मनेन्द्रगढ
संस्थापक- समग्र जीवन मार्गदर्शन संस्थान (SJMS)

Very nice....